Friday 31 July 2020

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- ई-दर्शन से भगवान के दर्शन नहीं होते, पूरा देश खुल रहा है तो धार्मिक स्थल बंद क्यों?

कोरोना महामारी के चलते देशभर में बंद मंदिर, मस्जिद और अन्य धार्मिक स्थलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने शुक्रवार को ई-सुनवाई में झारखंड के देवघर स्थित ऐतिहासिक बैद्यनाथ धाम मंदिर के मामले में कहा कि ई-दर्शन, भगवान के दर्शन करना नहीं होता। राज्य सरकार मंदिर में सीमित संख्या में श्रद्धालुओं को केंद्र की गाइडलाइन का पालन करते हुए जाने की अनुमति दे।

मंदिर में सालाना श्रावणी मेले के दौरान श्रद्धालुओं को दर्शन की अनुमति के लिए याचिका दायर की गई थी। हाईकोर्ट ने 3 जुलाई काे केवल ई-दर्शन की अनुमति दी थी। इस निर्णय को भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने चुनौती दी थी।

सरकार का तर्क- मंजूरी दी तो कोरोना का खतरा बढ़ेगा

  • जस्टिस मिश्रा: कोरोनाकाल में जब पूरा देश खुल रहा है तो मंदिर, मस्जिद, चर्च व अन्य धार्मिक स्थल क्यों बंद? महत्वपूर्ण दिनों में उन्हें क्यों नहीं खुलना चाहिए?
  • राज्य सरकार: अनुमति दी तो अव्यवस्था फैलेगी। कोरोना का खतरा बढ़ेगा। मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। उन पर काबू मुश्किल होगा। इसलिए मंदिर खोलने की मंजूरी नहीं दे सकते।
  • जस्टिस मिश्रा: ऐतिहासिक बैद्यनाथ धाम मंदिर में सीमित संंख्या में श्रद्धालुओं को जाने की अनुमति दी जा सकती है। ऐसी व्यवस्था बनाएं, जिससे श्रद्धालु बिना जोखिम के दर्शन कर सकें।
  • राज्य सरकार: सरकार ने मंदिर प्रबंधन के साथ मिलकर ई-दर्शन की सुविधा की है। इससे बिना कोरोना संक्रमण के श्रद्धालु भगवान के दर्शन कर सकते हैं।
  • जस्टिस मिश्रा (नाराजगी से): मंदिर में ई-दर्शन करना, भगवान का दर्शन करना नहीं होता।
  • याचिकाकर्ता: तीर्थस्थान पर जाकर भगवान से अपनी मुराद मांगने का अलग महत्व होता है।


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बाबा बैद्यनाथ धाम में हर साल श्रावणी मेले में भारी भीड़ जुटती है। याचिका में कहा गया था कि तीर्थस्थान पर जाकर मुराद मांगने का अपना महत्व होता है। -फाइल फोटो


source /local/delhi-ncr/news/the-supreme-court-said-e-darshan-devas-do-not-appear-if-the-whole-country-is-opening-why-should-the-religious-place-be-closed-127573277.html

अलास्का में दो प्लेन टकराए, रिपब्लिकन असेंबली मेंबर समेत सात लोगों की मौत

अमेरिका में एक हवाई दुर्घटना में सात लोगों की मौत हो गई। हादसा अलास्का के सोलडोन्टा शहर से कुछ किलोमीटर दूर हुआ। जानकारी के मुताबिक, दो छोटे विमान हवा में टकरा गए। मारे गए लोगों में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी के एक स्टेट असेंबली मेंबर गैरी नोप भी शामिल हैं।

सिंगल इंजन वाले प्लेन थे
न्यूयॉर्क टाइम्स ने स्थानीय अधिकारियों के हवाले से बताया- दोनों एयरक्राफ्ट सिंगल इंजन वाले थे। इनमें से एक हैविललैंड डीएचसी-2 बीवर और दूसरा पाइपर-पी12 था। दोनों ही विमानों ने सोलडोन्टा एयरपोर्ट से उड़ान भरी। एंकोरेज शहर से करीब 150 मील दूर हवा में यह आपस में टकरा गए। जानकारी के मुताबिक, फिलहाल अधिकारी मामले की जांच कर रहे हैं।

किसकी गलती?
अब तक ये साफ नहीं हो सका है कि हादसा किसकी गलती की वजह से हुआ। इसकी वजह ये है कि दुर्घटना एयरपोर्ट से काफी दूर हुई। उस वक्त मौसम बिल्कुल साफ था। दोनों विमानों के उड़ान भरने के वक्त में भी काफी अंतर था। घटना के वक्त विजिबिलिटी भी 10 किलोमीटर से ज्यादा थी। इस क्षेत्र में पायलट भी एक ही फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल करते हैं। लिहाजा, ये मानना भी मुश्किल है कि दोनों पायलटों की एटीसी से बातचीत नहीं हुई होगी। बहरहाल, मामले की जांच की जा रही है। पुलिस के मुताबिक, वो शुरुआती जांच के बाद ही बयान जारी करेगी।



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अलास्का में हुई विमान दुर्घटना में मारे गए लोगों में गैरी नोप भी शामिल हैं। नोप राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी स्टेट असेंबली मेंबर थे। (फाइल)


source https://www.bhaskar.com/international/news/two-planes-crash-in-alaska-in-us-seven-people-were-killed-127573527.html

ब्रिटेन में पाबंदियों से दो हफ्ते तक राहत नहीं, प्रधानमंत्री जॉनसन ने कहा- हमें आने वाले खतरे के लिए तैयार रहना होगा; दुनिया में अब तक 1.76 करोड़ केस

दुनिया में कोरोनावायरस से संक्रमण के अब तक 1 करोड़ 77 लाख 54 हजार 190 मामले सामने आ चुके हैं। इनमें 1 करोड़ 11 लाख 58 हजार 280 ठीक भी हो चुके हैं। वहीं, 6 लाख 82 हजार 885 की मौत हो चुकी है। ये आंकड़े https://ift.tt/2VnYLis के मुताबिक हैं। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने शुक्रवार को कहा कि देश में फिलहाल पाबंदियों में राहत नहीं दी जाएगी। यहां शनिवार से पाबंदियों में कुछ छूट दिया जानी थी।

उन्होंने कहा कि महामारी से बचाव के नियम दो हफ्तों तक बरकरार रहेंगे। ब्रिटेन के कुछ हिस्सों में नए मामले सामने आने के बाद यह फैसला किया गया है। हमारे संक्रमण और मौतों के मामले कम हुए हैं। हालांकि, कुछ यूरोपीय देशों में इसके आंकड़े बढ़ रहे हैं। ऐसे में हमें भी किसी भी खतरे से बचने के लिए तैयार रहना होगा।

10 देश जहां कोरोना का असर सबसे ज्यादा

देश

कितने संक्रमित कितनी मौतें कितने ठीक हुए
अमेरिका 47,05,889 1,56,747 23,27,572
ब्राजील 26,66,298 92,568 18,84,051
भारत 16,97,054 36,551 10,95,647
रूस 8,39,981 13,963 6,38,410
द.अफ्रीका 4,93,183 8,005 3,26,171
मैक्सिको 4,24,637 46,688 2,78,618
पेरू 4,07,492 19,021 2,83,915
चिली 3,55,667 9,457 3,28,327
स्पेन 3,35,602 28,443 उपलब्ध नहीं
ईरान 3,04,204 16,766 2,63,519

पेरू: 31 अगस्त तक इमरजेंसी बढ़ाई गई

पेरू की सरकार ने बढ़ते संक्रमण को देखते हुए इमरजेंसी 31 अगस्त तक बढ़ा दी है। राष्ट्रपति मार्टिन विजकारा ने शुक्रवार को इससे जुड़ा आदेश जारी किया। इसमें कहा गया है कि इमरजेंसी के दौरान लोगों की निजी आजादी और सुरक्षा के संवैधानिक हकों के इस्तेमाल पर रोक रहेगी। रात 10 बजे से सुबह 4 बजे तक देश में कर्फ्यू रहेगा।

ब्राजील: 52 हजार से ज्यादा नए मामले

ब्राजील में 24 घंटे में 52 हजार 383 नए मामले सामने आए हैं। इसी के साथ संक्रमितों की संख्या बढ़कर 26 लाख 62 हजार 485 हो गई है। स्वास्थ्य मंत्रालय शुक्रवार को बताया कि देश में मृतकों की संख्या 92 हजार 475 हो गई है। अब तक 18 लाख से अधिक मरीज स्वस्थ हो चुके है। ब्राजील संक्रमण और मौत के मामलों में दुनिया में अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर है।

अर्जेंटीना: लॉकडाउन 16 अगस्त तक बढ़ाया गया
अर्जेंटीना सरकार ने 16 अगस्त तक लॉकडाउन बढ़ाने का फैसला किया है। राष्ट्रपति अल्बर्टो फर्नांडीज ने शुक्रवार को इसका ऐलान किया। उन्होंने कहा कि राजधानी ब्यूनस आयर्स में सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं। अन्य जगहों पर भी संक्रमण बढ़ रहा है। ऐसे में फिलहाल लॉकडाउन में राहत नहीं दी जा सकती। देश में 20 मार्च को लॉकडाउन लगाया गया था।

चीन: कोरोना के 45 नए मामले
चीन में 24 घंटे में 45 नए मामले सामने आए हैं। इनमें से 39 लोकल ट्रांसमिशन के मामले हैं। यहां के हेल्थ कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक, 31 मामले शिनजियांग से और 8 लियाओनिंग राज्य में सामने आए हैं। शुक्रवार को यहां संक्रमण से कोई मौत नहीं हुई। एक दिन पहले यहां 127 नए मामले आए हैं। इनमें से 112 शिनजियांग से सामने आए थे।



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ब्रिटेन की राजधानी लंदन में शुक्रवार को मास्क लगाकर टॉवर ब्रिज से गुजरते लोग। सरकार ने कहा है कि फिलहाल सभी के लिए मास्क लगाना जरूरी है।


source https://www.bhaskar.com/international/news/there-is-no-relief-from-sanctions-in-britain-for-two-weeks-prime-minister-johnson-said-we-have-to-be-prepared-for-the-danger-to-come-177-million-cases-in-the-world-so-far-127573545.html

प्रधानमंत्री आज स्मार्ट इंडिया हैकाथन के ग्रांड फिनाले को संबोधित करेंगे, कहा- हमारे युवा कोरोना के बाद की दुनिया पर फोकस कर रहे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज शाम 4.30 बजे स्मार्ट इंडिया हैकाथन के ग्रांड फिनाले को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संबोधित करेंगे। वे स्टूडेंट्स से बात भी करेंगे। उन्होंने शुक्रवार को ट्वीट कर कहा कि यंग इंडिया टैलेंट से भरा हुआ है। हैकाथन में इनोवेशन और एक्सीलेंस का जोश दिख रहा है।

मोदी ने कहा कि स्मार्ट इंडिया हैकाथन कल्पना और नई खोजों के लिए एक शानदार प्लेटफॉर्म बनकर उभरा है। इस वक्त हमारे युवा कोरोना के बाद की दुनिया पर फोकस कर रहे हैं। साथ ही देश को आत्मनिर्भर बनाने के रास्तों पर आगे बढ़ रहे हैं।

स्मार्ट इंडिया हैकाथन क्या है?
देशभर के स्टूडेंट्स को डेली लाइफ में आने वाली दिक्कतों को सॉल्व करने का प्लेटफॉर्म देने के लिए एक इनीशिएटिव है। इसमें प्रोडक्ट इनोवेशन का कल्चर और प्रॉब्लम सॉल्विंग की सोच के साथ काम करना होता है। सरकार का कहना है कि इस हैकाथन के जरिए कुछ नया करने के आइडिया को युवाओं के बीच प्रमोट करने में कामयाबी मिली है।

स्मार्ट इंडिया हैकाथन का पहला एडिशन 2017 में हुआ था। उसमें 42 हजार स्टूडेंट्स ने पार्टिसिपेट किया था। 2018 में ये संख्या 1 लाख और 2019 में 2 लाख पहुंच गई। इस साल पहले राउंड में 4.5 लाख से भी ज्यादा स्टूडेंट्स शामिल हुए। इस साल ग्रांड फिनाले ऑनलाइन हो रहा है। इसमें 10 हजार से ज्यादा छात्रों के बीच 243 समस्याओं को सुलझाने के लिए कंपीटीशन है। ये समस्याएं 37 केंद्रीय विभागों, 17 राज्य सरकारों और 20 इंडस्ट्रीज से जुड़ी हैं।



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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि स्मार्ट इंडिया हैकाथन नई खोजों के लिए शानदार प्लेटफॉर्म बनकर उभरा है। (फाइल फोटो)


source /national/news/prime-minister-narendra-modi-to-address-smart-india-hackathon-127573562.html

एक दिन में 57486 मरीज बढ़े, देश में अब तक 16.97 लाख केस; दिल्ली में आज से सीरो सर्वे का दूसरा चरण शुरू होगा

देश में कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा शनिवार सुबह 16 लाख 97 हजार 54 पर पहुंच गया। पिछले 24 घंटे में देश में 57 हजार 486 मरीज बढ़े। यह एक दिन का सबसे ज्यादा आंकड़ा है। इससे पहले गुरुवार को सबसे ज्यादा 54 हजार 750 मरीज मिले थे। शुक्रवार को सबसे ज्यादा 10,376 संक्रमित आंध्र प्रदेश में मिले। महाराष्ट्र में 10,320 मरीज सामने आए। ये आंकड़े covid19india.org के मुताबिक हैं।

उधर, दिल्ली में सीरो-सर्वे का दूसरा चरण आज से शुरू हो रहा है। यह सर्वे 1 से 5 अगस्त तक चलेगा। इस दौरान 15 हजार सैंपल्स को इकट्ठा किया जाएगा। यह उत्तर और उत्तर-पूर्वी दिल्ली समेत चार जिलों में चलेगा। राज्य सरकार ने इससे पहले सीरो सर्वे 27 जून से 10 जुलाई तक किया था। इस दौरान 20 हजार सैंपल लिए गए थे।

दरअसल, सीरो सर्वे के तहत यह पता लगाया जाता है कि किन लोगों में एंटीबॉडीज डेवलप हो रही हैं। इसकी दर क्या है? कहने का मतलब- अगर किसी व्यक्ति को कोरोना होता है। उसके अंदर कोई लक्षण नहीं उभरता है, तो ऐसे व्यक्ति के शरीर में 5-7 दिन के अंदर अपने आप एंटीबॉडी बनना शुरू हो जाती हैं, जो वायरस को शरीर में पनपने नहीं देती हैं। इसे ही हर्ड इम्युनिटी कहते हैं।

5 राज्यों का हाल
मध्य प्रदेश: राज्य के किसी भी जिले में लॉकडाउन लगाने का फैसला अब कलेक्टर नहीं कर सकेंगे। उन्हें जिले में लॉकडाउन करने से पहले सरकार से मंजूरी लेनी होगी। इसके साथ ही राज्य में 1 से 14 अगस्त तक किल कोरोना अभियान पार्ट-2 शुरू किया जाएगा। इसके लिए नारा दिया है- संकल्प की चेन जोड़ो, कोरोना की चेन तोड़ो।

राजस्थान: राज्य में लगातार 7वें दिन एक हजार से ज्यादा नए रोगी सामने आए। शुक्रवार को 1147 रोगी मिले। जयपुर और बीकानेर में 4-4, अजमेर में 3 और बाड़मेर-नागौर में एक-एक व्यक्ति ने कोरोना की वजह से दम तोड़ दिया। अलवर में कलेक्ट्रेट स्थित कोरोना कंट्रोल रूम के ही चार कर्मचारी पॉजिटिव निकले। राजगढ़ में एसीजेएम कोर्ट के 8 कर्मी रोगी मिले। स्थानीय प्रशासन का दावा है कि अलवर में 185 नए रोगी आए, जबकि राज्य स्तरीय सूची में 90 ही हैं।

महाराष्ट्र: शुक्रवार को राज्य में 10,320 नए मामले सामने आए हैं। वहीं संक्रमण के चलते 265 लोगों की मौत हो गई। महाराष्‍ट्र में कोरोना संक्रमण के कुल मामले बढ़कर 4,22,118 हो गए हैं। इसमें 2,56,158 मरीज ठीक होकर डिस्चार्ज हो चुके हैं, जबक‍ि राज्‍य में अब तक 14,994 लोगों की मौत हो चुकी है। राज्य में अब 1,50,662 एक्टिव मामले हैं।

बिहार: राज्य में शुक्रवार को रिकॉर्ड 2986 मरीज मिले। इससे संक्रमितों का आंकड़ा 50 हजार पार कर गया। उधर, राज्य में कोरोना संक्रमण की दर में लगातार इजाफा हो रहा है। यह 9.3% हो गई है, जो राष्ट्रीय संक्रमण की दर 8.70% से ज्यादा है। राज्य में अब तक 5 लाख 48 हजार 172 सैंपल की जांच हुई है। जुलाई की अगर बात करें तो इस महीने 3 लाख 27 हजार 282 सैंपल की जांच हुई है और 40999 केस सामने आए। यानि हर 8 सैंपल में से एक संक्रमित मिल रहा है। अच्छी बात यह है कि एक हफ्ते पहले राज्य में जहां रोज 10 हजार सैंपल की जांच हो रही थी, वह अब बढ़कर 22 हजार पहुंच गई है।
उत्तर प्रदेश: राज्य में अब तक 23 लाख 25 हजार 428 टेस्ट किए जा चुके हैं। 5 सैंपल के 3358 पूल लगाए गए, जिसमें से 531 में पॉजिटिविटी पाई गई और 10 सैंपल के 302 पूल लगाए गए, जिसमें से 30 में पॉजिटिविटी पाई गई। उन्होंने बताया कि अब तक सर्विलांस से 40 हजार 823 इलाकों में 1 करोड़ 47 लाख 08 हजार 791 घरों का सर्विलांस किया गया है। इनमें 7 करोड़ 44 लाख 89 हजार 777 लोग रहते हैं।



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यह फोटो दिल्ली के राम मनोहर लोहिया हॉस्पिटल की है। यहां शुक्रवार को करीब दो हजार सैंपल लिए गए। राजधानी में रोजाना 20 हजार से ज्यादा सैंपल लिए जा रहे हैं।


source /national/news/coronavirus-outbreak-india-cases-live-news-and-updates-1-august-2020-127573400.html

कभी बड़े भाई से आगे था छोटा भाई; लेकिन 15 साल में मुकेश की नेटवर्थ 9 गुना बढ़ी, अनिल की जीरो हुई

13 मार्च 2006। ये वो दिन था जब अनिल अंबानी की टेलीकॉम कंपनी में बड़ा मर्जर हुआ था। इस दिन बोर्ड मीटिंग में तय हुआ कि रिलायंस इन्फोकॉम का रिलायंस कम्युनिकेशन वेंचर लिमिटेड में मर्जर होगा। इससे रिलायंस कम्युनिकेशन वेंचर लिमिटेड के शेयर प्राइस 67% बढ़ गए। इसका नतीजा ये हुआ कि इस दिन अनिल अंबानी की नेटवर्थ 45 हजार करोड़ रुपए हो गई थी। जबकि, उस दिन बड़े भाई मुकेश की नेटवर्थ 37 हजार 825 करोड़ रुपए थी।

ये वो समय था जब नेटवर्थ के मामले में छोटा भाई, बड़े भाई से ऊपर आ गया था। जबकि, एक हफ्ते पहले ही फोर्ब्स की लिस्ट आई थी, जिसमें मुकेश अंबानी, अनिल से आगे थे। फोर्ब्स की लिस्ट के मुताबिक, मार्च 2006 में मुकेश की नेटवर्थ 8.5 अरब डॉलर और अनिल की नेटवर्थ 5.7 अरब डॉलर थी।

दोनों भाइयों की बात इसलिए, क्योंकि आजकल चर्चा में दोनों ही भाई हैं। कुछ दिन पहले ही फ्रांस से राफेल फाइटर जेट आए हैं। इसे फ्रांस की डसॉल्ट एविएशन ने तैयार किए हैं। राफेल डील में अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस ऑफसेट पार्टनर है। और बड़े भाई मुकेश दुनिया के 5वें सबसे अमीर शख्स बन गए हैं।

जब दोनों भाई अलग हुए, तब दोनों की नेटवर्थ 7 अरब डॉलर थी
मुकेश अंबानी 1981 और अनिल अंबानी 1983 में रिलायंस से जुड़े थे। जुलाई 2002 में धीरूभाई अंबानी के निधन के बाद मुकेश अंबानी रिलायंस ग्रुप के चेयरमैन बने। अनिल मैनेजिंग डायरेक्टर बने। नवंबर 2004 में पहली बार मुकेश और अनिल का झगड़ा सामने आया। जून 2005 में दोनों के बीच बंटवारा हुआ।

मार्च 2005 में मुकेश और अनिल की ज्वाइंट नेटवर्थ 7 अरब डॉलर थी। उससे पहले 2004 में दोनों की कंबाइंड नेटवर्थ 6 अरब डॉलर थी। जबकि, 2003 में महज 2.8 अरब डॉलर। मतलब कारोबार संभालने के दो साल में ही मुकेश और अनिल की नेटवर्थ ढाई गुना बढ़ गई थी।

मुकेश और अनिल की नेटवर्थ उस समय बढ़ी थी, जब लगातार दो साल से धीरूभाई अंबानी की नेटवर्थ में गिरावट आ रही थी। 2000 में धीरूभाई की नेटवर्थ 6.6 अरब डॉलर थी, जो 2002 में गिरकर 2.9 अरब डॉलर हो गई थी।

बंटवारे के बाद से 15 साल में मुकेश की नेटवर्थ 9 गुना बढ़ी
जून 2005 में दोनों के बीच बंटवारा तो हो गया। लेकिन, किस भाई को कौनसी कंपनी मिलेगी? इसका बंटवारा 2006 तक हो पाया था। बंटवारे के बाद मुकेश अंबानी के हिस्से में पेट्रोकेमिकल के कारोबार रिलायंस इंडस्ट्रीज, इंडियन पेट्रो केमिकल्स कॉर्प लिमिटेड, रिलायंस पेट्रोलियम, रिलायंस इंडस्ट्रियल इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड जैसी कंपनियां आईं।

छोटे भाई ने अनिल धीरूभाई अंबानी ग्रुप बनाया। इसमें आरकॉम, रिलायंस कैपिटल, रिलायंस एनर्जी, रिलायंस नेचुरल रिसोर्सेस जैसी कंपनियां थीं।

रिलायंस ग्रुप का बंटवारा होने से पहले तक मार्च 2005 में मुकेश और अनिल की ज्वाइंट नेटवर्थ 7 अरब डॉलर थी। उसके बाद 2006 से लेकर 2008 तक तो दोनों भाइयों की नेटवर्थ में ज्यादा अंतर नहीं था।

लेकिन, 2009 में आर्थिक मंदी आई। दुनियाभर के अमीरों की संपत्ति में गिरावट दर्ज की गई। मुकेश और अनिल अंबानी की संपत्ति में भी बड़ा फर्क यहीं से आना शुरू हुआ।

एक तरफ अरबपतियों की लिस्ट में अनिल की रैंकिंग गिरते गई और मुकेश की रैंकिंग बढ़ती गई। 2008 में मुकेश 5वें और अनिल 6वें नंबर पर थे। लेकिन, अब अनिल अंबानी तो अरबपतियों की लिस्ट से बाहर ही हो गए हैं।

2006 से लेकर अब तक मुकेश अंबानी की नेटवर्थ में 9 गुना से ज्यादा का इजाफा हुआ है। जबकि, फरवरी 2020 में ब्रिटेन की एक कोर्ट में अनिल कह चुके हैं कि उनकी नेटवर्थ जीरो है और वो दिवालिया हो चुके हैं।

मुकेश अंबानी टेलीकॉम में आए, तो सबसे बड़ा नुकसान छोटे भाई को हुआ
2002 का समय था। उस समय दोनों भाई साथ थे। धीरूभाई अंबानी भी थे। उस समय रिलायंस ग्रुप ने रिलायंस इन्फोकॉम से टेलीकॉम इंडस्ट्री में कदम रखा था। उस समय फोन पर बात करना महंगा होता था। उस समय रिलायंस ने सस्ते दामों में ग्राहकों को वॉइस कॉलिंग की सुविधा दी। कंपनी ने स्लोगन दिया ‘कर लो दुनिया मुट्ठी में’।

लेकिन, धीरूभाई की मौत के बाद रिलायंस इन्फोकॉम छोटे भाई अनिल के हिस्से में आ गई। ये वो समय था जब मोबाइल फोन का मार्केट तेजी से बढ़ रहा था। लेकिन, दोनों भाइयों के बीच एक समझौता हुआ था और वो समझौता ये था कि मुकेश ऐसा कोई बिजनेस शुरू नहीं करेंगे, जिससे अनिल को नुकसान हो। 2010 में ये समझौता भी खत्म हो गया।

2010 में ही रिलायंस इंडस्ट्रीज ने 4,800 करोड़ रुपए में इन्फोटेल ब्रॉडबैंड सर्विस लिमिटेड (आईबीएसएल) की 95% हिस्सेदारी खरीद ली। आईबीएसएल देश की पहली और इकलौती कंपनी थी, जिसने देश के सभी 22 जोन में 4जी ब्रॉडबैंड स्पेक्ट्रम फैला दिया था। बाद में इसी का नाम ही ‘रिलायंस जियो’ पड़ा।

5 सितंबर 2016 को मुकेश अंबानी ने रिलायंस जियो लॉन्च कर दी। शुरुआत में कंपनी ने 6 महीने तक 4जी डेटा और वॉइस कॉलिंग फ्री रखी। इसका नतीजा ये हुआ कि रिलायंस जियो तेजी से बढ़ने लगी।

टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी ट्राई के आंकड़ों के मुताबिक, सितंबर 2016 में रिलायंस जियो के पास 1.5 करोड़ से ज्यादा ग्राहक आ गए थे। इस समय तक छोटे भाई अनिल की रिलायंस इन्फोकॉम कंपनी का मार्केट शेयर भी 8% से ज्यादा था।

जैसे-जैसे समय बीतता गया, प्राइस वॉर की वजह से अनिल की कंपनी के ग्राहक घटते गए और मुकेश की कंपनी के ग्राहक बढ़ते गए। अप्रैल 2020 तक जियो के पास 38 करोड़ से ज्यादा ग्राहक हैं। जबकि, रिलायंस के ग्राहकों की संख्या अब 18 हजार भी नहीं रह गई है।

मुकेश आगे बढ़ते रहे, अनिल कर्जदार बनते गए
जब दुनिया में आर्थिक मंदी आई, तो दुनिया भर के अमीरों का अच्छा-खासा नुकसान हुआ। मुकेश और अनिल की संपत्ति में भी भारी कमी आ गई। इस सबसे बड़े भाई मुकेश तो निकल गए, लेकिन छोटे भाई अनिल फंसते ही चले गए। एक तरफ बड़ा भाई का कारोबार बढ़ रहा था, तो दूसरी तरफ छोटे भाई पर कर्ज।

आज हालत ये है कि अनिल अंबानी दिवालिया होने की कगार पर हैं। तो दूसरी ओर मुकेश अंबानी अपनी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज को कर्जमुक्त कर चुके हैं। 31 मार्च 2020 तक रिलायंस इंडस्ट्रीज पर 1.61 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज था, लेकिन अब उनकी कंपनी पर कोई कर्ज नहीं है। जबकि, अनिल अंबानी पर 1 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज है।

एक ओर रिलायंस इंडस्ट्रीज की कंपनियों की मार्केट कैप 12 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा हो गई है। दूसरी ओर अनिल अंबानी की कंपनियों की मार्केट कैप 2 हजार करोड़ रुपए से भी कम हो गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, फरवरी 2020 तक अनिल की कंपनियों की मार्केट कैप 1,645.65 करोड़ रुपए थी।

अमीरों के पास कितनी दौलत?:मुकेश अंबानी की नेटवर्थ देश के 9 छोटे राज्यों की जीडीपी के बराबर; दुनिया के टॉप-3 अरबपतियों की संपत्ति भारत के बजट से भी ज्यादा

आरआईएल का रुतबा:आधे पाकिस्तान के बराबर है रिलायंस की नेटवर्थ, अगर एक देश होता रिलायंस तो 134 देशों से ऊपर होती उसकी जीडीपी



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Mukesh Ambani Vs Anil Ambani Net Worth 2020 | Know Who Was Richer RIL Chairman Vs Anil Reliance Group


source https://www.bhaskar.com/db-original/news/mukesh-ambani-vs-anil-ambani-net-worth-2020-ril-reliance-chairman-all-you-need-to-know-127573179.html

बच्चों के पास मोबाइल नहीं थे तो शुरू किया ओपन एयर कम्युनिटी स्कूल, अकेले बडगाम जिले में 8 हजार बच्चे पढ़ रहे हैं

कोरोना के चलते देश भर में पिछले चार महीनों से स्कूल बंद हैं। देश में कोरोना का संक्रमण तेजी से फैल रहा है, यही वजह है कि अनलॉक-3 में भी स्कूलों को खोलने की इजाजत नहीं दी गई है। इन सबके बीच कश्मीर की वादियों में बच्चे अब स्कूल के बंद कमरों की बजाय नीले आसमान के नीचे पहाड़ों के बीच ओपन पढ़ाई कर रहे हैं।

तस्लीमा बशीर अब ओपन एयर कम्युनिटी स्कूल में पढ़ाई कर रही हैं। फोटो: आबिद बट

कश्मीर के बडगाम जिले के पहाड़ी क्षेत्र में रहने वालीं तस्लीमा बशीर आठवीं क्लास में पढ़ती हैं। तस्लीमा को पढ़ाई करना पसंद है। स्कूल ने वर्चुअल क्लासेज के जरिए पढ़ाई भी कराई, लेकिन ना तो तस्लीमा के घर में मोबाइल है और न ही उनके घर तक मोबाइल नेटवर्क की पहुंच है। ऐसे में तस्लीमा खुद ही घर पर बैठकर जो मन आया वो पढ़ लेती थीं।

इसके बाद जब 1 जून से ओपन एयर कम्युनिटी स्कूल की शुरूआत हुई तो यहां आने के बाद तस्लीमा के चेहरे पर एक अलग ही रौनक नजर आई। बडगाम जिले के दूधपथरी की वादियों में तस्लीमा की तरह कई बच्चे ओपन एयर स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं। तस्लीमा कहती हैं कि इस तरह खुली वादियों के बीच पढ़ना ज्यादा अच्छा लगता है।

मैं घर पर ज्यादा पढ़ाई नहीं कर पाती थी, क्योंकि मुझे कई और काम भी करने पड़ते थे। तस्लीमा की ही तरह और बच्चों को भी इस तरह के कम्युनिटी स्कूल में पढ़ना अच्छा लग रहा है। इन बच्चों के पेरेंट्स रोजाना पहाड़ की चढ़ाई पार करके इस कम्युनिटी स्कूल तक छोड़ने आते हैं।

जो बच्चे मोबाइल, इंटरनेट के अभाव में वर्चुअल क्लासेज तक नहीं पहुंच सके, वो अब कम्युनिटी स्कूल में आकर पढ़ाई कर रहे हैं। फोटो: आबिद बट

मोबाइल फोन के अभाव में कई बच्चे अटेंड नहीं कर सके वर्चुअल क्लासेज

बडगाम जिले की चीफ एजुकेशन ऑफिसर फातिमा बानो बताती हैं कि जिले में 1,271 स्कूल हैं, इनमें 702 प्राइमरी, 422 मिडिल, 101 हाईस्कूल और 46 हायर सेकेंडरी स्कूल हैं। यहां कुल 75 हजार छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं। इन बच्चों को पढ़ाने के लिए बडगाम जिले में 6,122 टीचर्स हैं। फातिमा पिछले 35 सालों से एजुकेशन सेक्टर से जुड़ी हैं और 31 अगस्त को उनका रिटायरमेंट हैं।

कुछ बच्चे मोबाइल, इंटरनेट के अभाव में वर्चुअल क्लासेज तक नहीं पहुंच सके

फातिमा बताती हैं कि काेरोना के दौरान जब हमने वर्चुअल क्लासेज की शुरुआत की तो 75 हजार बच्चों में से 61 हजार जूम व अन्य माध्यम से हमसे जुड़े। बाकी बच्चों के नहीं जुड़ने का कारण पूछा तो पता चला कि कुछ बच्चे अपने परिवारों के साथ वापस अपने प्रदेश चले गए जोकि यहां काम करने के लिए आते थे। जबकि, कुछ बच्चे मोबाइल, इंटरनेट के अभाव में वर्चुअल क्लासेज तक नहीं पहुंच सके।

उनके पेरेंट्स ने बताया कि वो इतने समर्थ नहीं हैं कि मोबाइल खरीद सकें। फातिमा बताती हैं कि उन बच्चों को कैसे जोड़ा जाए इसे लेकर मैंने कमिश्नर सेक्रेट्री और डायरेक्टर एजुकेशन से बात की और फिर ओपन एयर कम्युनिटी स्कूल का विचार आया। जिले में 13 जोन हैं और हर जोन में 4 से 5 ओपन एयर कम्युनिटी स्कूल संचालित हो रहे हैं। जहां 8 हजार से अधिक बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं।

क्लास शुरू होने से पहले उन्हें फेस मास्क-हैंड सैनिटाइजर दिया जाता है। फोटो: आबिद बट

क्लास शुरू होने से पहले बच्चों को देते हैं फेस मास्क, हैंड सैनिटाइजर

बडगाम के जोनल एजुकेशन ऑफिसर मोहम्मद रमजान बताते हैं कि खुली हवा में पढ़ाई के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग के नियम का पालन किया जाता है। क्लास शुरू होने से पहले उन्हें फेस मास्क और हैंड सैनिटाइजर दिया जाता है। सभी बच्चों को आठ समूहों में उनकी उम्र के अनुसार बिठाया जाता है।

वहीं टीचर मंजूर अहमद कहते हैं कि हमें घर पर बैठकर वेतन लेना अच्छा नहीं लगता था। स्कूल की इमारत की तुलना में इन वादियों में पढ़ाने में ज्यादा अच्छा लगता है। कश्मीर में कोरोनावायरस महामारी के पहले से ही स्कूली शिक्षा प्रभावित हुई थी। पिछले साल सरकार ने यहां अनुच्छेद-370 हटाकर जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा खत्म कर यहां कर्फ्यू लगा दिया था। कर्फ्यू हटने के कुछ महीनों बाद ही कोरोना के चलते लॉकडाउन लग गया।

तेज धूप और बारिश में बच्चों को परेशान होना पड़ता है। फोटो: आबिद बट

इन कम्युनिटी स्कूल में नहीं हैं धूप, बारिश से बचने के इंतजाम

तंगधार में संचालित होने वाले इस कम्युनिटी स्कूल में 8वीं क्लास में पढ़ने वाले एक छात्र ने बताया कि यहां बाकी सब तो ठीक है लेकिन तेज धूप और बारिश में पढ़ाई नहीं हो पाती है, अगर अधिकारी यहां टेंट की व्यवस्था करा दें तो हम ज्यादा अच्छे से पढ़ाई कर सकेंगे।

वहीं, 7वीं क्लास में पढ़ने वाली अनीशा जौहर बताती हैं कि पहले टीचर्स घरों में आकर पढ़ाते थे, घर में इतनी जगह नहीं होती थी कि हम पढ़ाई कर सकें लेकिन कम्युनिटी स्कूल में पढ़ना अच्छा लगता है। वर्तमान में यह कम्युनिटी क्लासेज विंटर जोन में आने वाले जिलों में चल रही हैं, चूंकि पूरे प्रदेश में 2जी इंटरनेट ही चल रहा है, ऐसे में जूम क्लासेज में भी काफी दिक्कतें आती हैं।

ऐसे में कश्मीर संभाग में कम्युनिटी स्कूल की सफलता के बाद जम्मू संभाग में इसे शुरू किया गया है।

कश्मीर के सुदूरवर्ती गांवों में इस तरह संचालित हो रहे हैं ओपन एयर कम्युनिटी स्कूल। फोटो: आबिद बट


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कश्मीर के बडगाम जिले के पहाड़ी क्षेत्र में इस तरह ओपन एयर कम्युनिटी स्कूल संचालित किए जा रहे हैं। फोटो: आबिद बट


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सतेंद्र दास कहते हैं, जब बाबरी विध्वंस हुआ तो मैं वहीं था, सुबह 11 बज रहे थे, हम रामलला को उठाकर अलग चले गए, ताकि वो सुरक्षित रहें

राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी हैं सत्येंद्र दास। कहते हैं "सबसे बड़ी बात है कि राममंदिर बन रहा है। 28 साल से मैं पुजारी के रूप में रामलला की सेवा कर रहा हूं। मन मे एक टीस थी कि रामलला टेंट में हैं, लेकिन ठाकुर जी की कृपा से सब सही हो गया। अब हमारे आराध्य श्री राम टाट से निकल कर ठाट में आ गए हैं।

चूंकि, अब ट्रस्ट बन गया है मंदिर बनने के बाद मैं आगे पुजारी रहूंगा या नहीं, यह नहीं कह सकता हूं। क्योंकि बीच मे मेरे रिश्ते विहिप से खराब हो गए थे। साल 2000 में अशोक सिंघल समेत कई बड़े विहिप के नेता जबरदस्ती जन्मस्थान में घुस आए थे। उनके पीछे मीडिया भी थी।

तत्कालीन डीएम भगवती प्रसाद मामले को रफा-दफा करना चाह रहे थे। लेकिन, मीडिया में खबर चलने के बाद यह संभव नही हो सका। बाद में पत्रकारों ने हमसे भी पूछा तो हमने भी नाम बता दिया। इसके बाद विहिप वाले हमसे नाराज हो गए।

हालांकि, हमने संबंध बनाए रखा, लेकिन सही बात यह है कि अब वो बात नहीं है। 80 साल उम्र हो चुकी है। रामलला की सेवा में 28 साल बिता दिए हैं। अगर मौका मिलेगा तो बाकी जिंदगी भी उन्हीं की सेवा में बिताना चाहता हूं।’

अभी तक हम सभी उन्हें एक पुजारी के रूप में जानते आए हैं। आज हम आपको उनकी पिछली जिंदगी में ले चलते हैं।

1958 में घर छोड़ चले आए थे अयोध्या
सत्येंद्र दास बताते हैं कि मैं संत कबीरनगर का रहने वाला हूं। अपने पिताजी के साथ बचपन से अयोध्या आता रहता था। उस समय आसपास का माहौल भी बहुत धार्मिक रहता था। पिता जी अभिराम दास जी के पास आया करते थे। अभिराम दास वही हैं जिन्होंने राम जन्मभूमि में 1949 में गर्भगृह में मूर्तियां रखीं थी। उनसे भी मैं प्रभावित था।

साथ ही पढ़ने की इच्छा थी, तो 8 फरवरी 1958 को मैं अयोध्या आ गया। मेरे परिवार में हम दो भाई और एक बहन थी। जब पिताजी को पता चला कि मैं संन्यासी बनना चाहता हूं तो उन्हें बड़ी खुशी हुई। उन्होंने कहा कि एक भाई घर पर रहेगा और एक भगवान की सेवा में जाएगा। फिर मैं चला आया। अब परिवार में भाई है। कभी-कभी आता-जाता रहता है। त्योहार, उत्सव, पूजा इत्यादि पर मैं भी घर जाता रहता हूं। बहन की मृत्यु हो चुकी है।

राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास दो भाई हैं। उनका एक भाई घर पर है। उनकी बहन का निधन हो चुका है।

1976 में मिली सहायक अध्यापक की नौकरी
सत्येंद्र दास बताते हैं कि यहां मैंने संस्कृत विद्यालय से आचार्य 1975 में पास किया। 1976 में फिर अयोध्या के संस्कृत महाविद्यालय में व्याकरण विभाग में सहायक अध्यापक की नौकरी मिल गई। उस समय 75 रुपए तनख्वाह थी। इस दौरान मैं राम जन्मभूमि भी आया जाया करता था। श्री अभिराम दास हमारे गुरु थे। इस दौरान मैं कथा, पूजा इत्यादि भी करने जाया करता था। नवरात्रों में जन्मभूमि में कलश स्थापना का कार्य भी करता था। तब कभी नहीं सोचा था कि कभी यहां का मुख्य पुजारी बनूंगा।

1 मार्च 1992 को को मिला रामलला की सेवा का मौका
सत्येंद्र दास कहते हैं कि सब कुछ जीवन में सामान्य चल रहा था। 1992 में रामलला के पुजारी लालदास थे। उस समय रिसीवर की जिम्मेदारी रिटायर जज पर हुआ करती थी। उस समय जेपी सिंह बतौर रिसीवर नियुक्त थे। उनकी फरवरी 1992 में मौत हो गई तो राम जन्मभूमि की व्यवस्था का जिम्मा जिला प्रशासन को दिया गया। तब पुजारी लालदास को हटाने की बात हुई।

उस समय मैं तत्कालीन भाजपा सांसद विनय कटियार विहिप के नेताओं और कई संत जो विहिप नेताओं के संपर्क में थे, उनसे मेरा घनिष्ठ संबंध था। सबने मेरे नाम का निर्णय किया। तत्कालीन विहिप अध्यक्ष अशोक सिंघल की भी सहमति मिल चुकी थी। जिला प्रशासन को सबने अवगत कराया और इस तरह 1 मार्च 1992 को मेरी नियुक्ति हो गई। मुझे अधिकार दिया गया कि मैं अपने 4 सहायक पुजारी भी रख सकता हूं। तब मैंने 4 सहायक पुजारियों को रखा।

सत्येंद्र दास 28 साल से रामलला की सेवा कर रहे हैं।

मंदिर से स्कूल और स्कूल से मंदिर यही दिनचर्या थी
सत्येंद्र दास बताते हैं कि उस समय स्कूल और मंदिर में सामंजस्य बिठाना थोड़ा मुश्किल था, लेकिन सहायक पुजारियों की वजह से सब आसान हो गया था। सुबह तड़के से 10 बजे तक मंदिर में रहता, फिर 10 बजे से 4 बजे तक स्कूल में रहता। फिर 4 बजे के बाद से शाम तक मंदिर में। इस तरह पूजा का काम भी चल रहा था और स्कूल का भी चल रहा था।

100 रुपए पारिश्रमिक बतौर पुजारी मिलता था
सत्येंद्र दास बताते हैं कि मैं चूंकि सहायता प्राप्त स्कूल में पढ़ाता था, तो मुझे वहां से भी तनख्वाह मिलती थी। ऐसे में मंदिर में मुझे बतौर पुजारी सिर्फ 100 रुपए पारिश्रमिक मिलता था। जब 30 जून 2007 को मैं अध्यापक के पद से रिटायर हुआ, तो मुझे फिर यहां 13 हजार रुपए तनख्वाह मिलने लगी। मेरे सहायक पुजारियों को अभी 8000 रुपए तनख्वाह मिलती है।

28 साल से रामलला टेंट में विराजमान थे। अब उनका मंदिर बनने जा रहा है।

जब बाबरी विध्वंस हुआ तो मैं रामलला को बचाने में लगा था
सत्येंद्र दास कहते हैं कि जब बाबरी विध्वंस हुआ तो मैं वहीं था। सुबह 11 बज रहे थे। मंच लगा हुआ था। लाउड स्पीकर लगा था। नेताओं ने कहा पुजारी जी रामलला को भोग लगा दें और पर्दा बंद कर दें। मैंने भोग लगाकर पर्दा लगा दिया। एक दिन पहले ही कारसेवकों से कहा गया था कि आप लोग सरयू से जल ले आएं। वहां एक चबूतरा बनाया गया था।

ऐलान किया गया कि सभी लोग चबूतरे पर पानी छोड़ें और धोएं, लेकिन जो नवयुवक थे उन्होंने कहा हम यहां पानी से धोने नही आए हैं। हम लोग यह कारसेवा नही करेंगे। उसके बाद नारे लगने लगे। सारे नवयुवक उत्साहित थे। वे बैरिकेडिंग तोड़ कर विवादित ढांचे पर पहुंच गए और तोड़ना शुरू कर दिया। इस बीच हम रामलला को बचाने में लग गए कि उन्हें कोई नुकसान न हो। हम रामलला को उठाकर अलग चले गए। जहां उन्हें कोई नुकसान नहीं हुआ।

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Ayodhya Ram Mandir Pujari Satyendra Das News | All You Need to Know About Ram Janmabhoomi Temple Chief Priest Satyendra Das


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यहां चार छावनियां थीं, अब तीन बची हैं, बड़ी छावनी, छोटी हो गई और छोटी छावनी बड़ी हो गई, इन छावनियों में रहते हैं साधु-संत

पिछले कई सालों में अनेक बार अयोध्या पुलिस छावनी बनी है। पांच अगस्त को भूमि पूजन का कार्यक्रम है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस दिन अयोध्या आएंगे। इस लिहाज से एक बार फिर अयोध्या की किलेबंदी शुरू हो गई है। बड़ी संख्या में सुरक्षा बल तैनात हैं। हर मुख्य सड़क पर पुलिस की बैरिकेडिंग है।

मतलब, एक बार फिर अयोध्या छावनी में तब्दील हो जाएगी। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि अयोध्या में कई छावनियां सालों से हैं और वहां साधु-संत रहते आ रहे हैं।

इन छावनियों का इतिहास भारत में मुगल काल के कमजोर होने के साथ शुरू होता है। हालांकि, इनका कोई लिखित इतिहास उपलब्ध नहीं है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि वैरागी साधुओं ने धर्म की रक्षा के लिए अयोध्या में एक साथ गुट बनाकर रहना शुरू किया और इनके एक साथ रहने की वजह से अंग्रेजों के समय उनके रहने की जगह को छावनी कहा जाने लगा।

कुछ समय पहले तक अयोध्या में चार प्रमुख छावनियां थीं- तुलसी दास जी की छावनी, बड़ी छावनी, तपसी जी की छावनी और छोटी छावनी। तुलसी दास जी की छावनी खत्म हो गई। खत्म होने की कोई साफ-साफ वजह तो कोई नहीं बताता लेकिन अयोध्या के रहने वाले मानते हैं कि उस छावनी में संतों का जाना-आना बंद हुआ और फिर धीरे-धीरे उसका वजूद ही खत्म हो गया।

बाकी बची तीन छावनियां आज भी आबाद हैं। आइए, एक-एक करके इन तीनों छावनियों में चलते हैं।

बड़ी छावनी
मुख्य अयोध्या शहर से दूर, एक किनारे में लगभग तीन एकड़ जमीन पर आबाद है ये छावनी। चारों तरफ बुलंद चारदीवारी है और आने-जाने के लिए एक दरवाजा है। इसे बड़ी छावनी क्यों कहते हैं? इस सवाल का कोई एक जवाब नहीं है। अलग-अलग जवाब हैं। एक का वजूद आस्था पर टिका है तो दूसरे का आकलन पर।

संतों के मुताबिक, बहुत पहले एक संन्यासी अपने साथ बारह सौ साधु-संतों के साथ घूमते हुए अयोध्या आए। वो चार महीने के लिए अयोध्या में डेरा डालना चाहते थे। चुकी उनके साथ और ग्यारह सौ साधु थे सो कोई तैयार नहीं हो रहा था। तब इस छावनी के पहले महंत श्री रघुनाथ दास जी महाराज ने उन्हें और उनके साथी साधुओं को यहां साल भर के लिए रोका। तभी इसे बड़ी छावनी कहते हैं।

बड़ी छावनी अयोध्या शहर से दूर तीन एकड़ में बनी है।

वहीं, पिछले कई साल से धर्म और उसके पीछे के मर्म पर लिखने वाले और इस वास्ते कई बार अयोध्या आ चुके पत्रकार भव्य श्रीवास्तव का मानना है कि संभवतः इसका लेना-देना केवल उस क्षेत्रफल से है, जिसमें छावनी आबाद है।

छावनी के बीच में एक मंदिर है और चारों तरफ छोटे-छोटे कमरे बने हैं। एक तरफ जो कमरे हैं, उनके सामने साधू निवास लिखा है और दूसरी तरफ जो कमरे हैं उनके दरवाजे पर अलग-अलग लोगों के नाम और उनके जन्मस्थान लिखे हैं। ये बिलकुल वैसा ही है जैसे होटल में एक तरफ गर्ल्स होटल लिखा होता है तो दूसरी तरफ बॉयज होटल।

बड़ी छावनी में रहने वाले और खुद को छावनी का भक्त बताने वाले राम सरस इस बारे में बताते हैं, “देखिए। एक तरफ संत रहते हैं। उनकी दिनचर्या अलग होती है। एक तरफ भक्त रहते हैं और वो अपने हिसाब से रहते हैं। ऐसा इसलिए बनाया गया है ताकि भक्तों को संतों से और संतों को भक्तों से कोई दिक्कत ना हो।”

तपसी (तपस्वी) जी की छावनी
अयोध्या शहर के रामघाट इलाके में स्थित है ये छावनी। भव्य इमारत और इमारत पर की गई कारीगरी से सहज अंदाजा हो जाता है कि छावनी बहुत पहले से आबाद है। छावनी के बाहर पुलिस का पहरा रहता है। इसकी वजह आपको आगे बताएंगे।

अभी तो आप ये जानिए कि ये छावनी उन साधु-संन्यासियों के लिए बनवाया गया था जो जंगलों और पहाड़ों में तपस्या करते थे। जब वो घूमते-घूमते अयोध्या आते थे तो उनको ठहरने में और अपनी दिनचर्या बनाए रखने में दिक्कत होती थी। इन्हीं बातों का ख्याल रखते हुए इस छावनी का निर्माण हुआ।

तपस्या करने वाले साधु-संतों के ठहरने के लिए तपसी छावनी का निर्माण हुआ था।

खुद का परिचय जगतगुरु परमहंस आचार्य जी के रूप में करवाते हैं और इनके समर्थक इनको इस छावनी के वर्तमान महंत बताते हैं। जब हमने इनसे पूछा कि इस छावनी का निर्माण कब हुआ तो वो बोले, “अयोध्या में सबसे प्राचीनतम पीठ और सबसे सिद्ध पीठ तपसी जी की छावनी है। इसके बाद अयोध्या में कई छावनियां बनीं लेकिन सबसे पुरानी छावनी यही है।”

ऐसे ही दावे बड़ी छावनी में रहने वाले संत भी कर चुके हैं। इन दावों का कोई प्रामाणिक आधार नहीं है। बस अपनी-अपनी मान्यताओं के आधार पर जो जिस छावनी से जुड़ा है उसे सबसे पुराना बताता है।

तपसी छावनी के महंत परमहंस आचार्य जी।

तपसी छावनी का जिक्र पिछले साल नवंबर में तब राष्ट्रीय स्तर पर हुआ था जब परमहंस आचार्य यानी संत परमहंस दास ने राम जन्मभूमि न्यास के महंत नृत्यगोपालदास पर कथित तौर पर अभद्र टिप्पणी की। इसके बाद महंत नृत्यगोपालदास के समर्थकों ने उनको घेर लिया। उन पर हमला किया। पुलिस आई तो ही वो बाहर जा सके।

तब परमहंस दास को तपस्वी छावनी ने ये कहते हुए निष्कासित कर दिया था कि उनका आचरण अशोभनीय था। स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि इसके बाद वो महीनों तक इधर-उधर भागे-भागे फिर रहे थे। जब उन्होंने अपने गुरु से माफी मांगी तो उनकी वापसी हुई। इसी घटना के बाद से छावनी के बाहर पुलिस के जवानों की तैनाती रहती है।

छोटी छावनी
आज की तारीख में अयोध्या की सबसे महत्वपूर्ण यही छावनी है। बाकी सभी छावनियों की तुलना में यहां चहल-पहल ज्यादा रहती है। सीआरपीएफ के चार जवान सुरक्षा में तैनात रहते हैं। वजह ये है कि इस छावनी के वर्तमान महंत नृत्यगोपालदास हैं।

सबसे ज्यादा चहल-पहल छोटी छावनी में ही रहती है।

राम मंदिर आंदोलन के अहम किरदार रहे अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपालदास हैं और सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने के बाद राम मंदिर निर्माण के लिए बनाए गए 'श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र' ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं।

छोटी छावनी के महंत नृत्यगोपालदास।

इस छावनी को छोटी छावनी के नाम से ही अयोध्या में लोग जानते हैं, लेकिन कुछ साल पहले इसका नाम बदलकर श्री मणिराम दास छावनी कर दिया गया। बिना अपनी पहचान जाहिर किए एक संत इसकी वजह बताते हैं। वो कहते हैं, “हम तो छोटी छावनी ही जानते थे। कुछ साल पहले नाम बदल दिया गया। शायद महंत जी को छोटी छावनी कहने में अच्छा नहीं लगता होगा।”

छोटी छावनी के अंदर सीआरपीएफ की पोस्ट।

पांच अगस्त को अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आने की सम्भावना है। तैयारियां हर ओर हो रही हैं। छोटी छावनी यानी श्री मणिराम दास छावनी में भी चहल-पहल बढ़ी हुई है। अयोध्या की सभी छावनियों में आज इस छावनी का कद और प्रभाव सबसे ज्यादा है। इस वजह से बाकी छावनियों के महंतों के मन में एक कसक दिखती है। कोई भी खुलकर नहीं बोलता लेकिन करने पर ये साफ-साफ समझ आता है कि छोटी छावनी के प्रभाव का बड़ा हो जाना, बाकियों को रास नहीं आ रहा है।

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Ayodhya Ram Mandir (Janmabhoomi) Ground Report Latest; Know How Many Chhaavanee (Cantonment) in Uttar Pradesh Ayodhya


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जिम जाने से पहले कोरोना के डर को मन से निकालना होगा, 7 तरह की सावधानियों के लिए भी खुद को तैयार करना होगा

देश में कोरोना के अब रोजाना 55 हजार से ज्यादा केस आ रहे हैं, इस बीच देश में अनलॉक 3 भी शुरू होने जा रहा है। लेकिन चार महीने से घर पर बैठे फिटनेस प्रेमियों के लिए अच्छी खबर है। सरकार ने 5 अगस्त से जिम और योगा सेंटर्स को दोबारा खोलने की अनुमति दे दी है। हालांकि, एक्सपर्ट्स अभी लोगों को जिम में जाने से बचने और आउटडोर एक्सरसाइज की सलाह दे रहे हैं। कहते हैं कि जिम जाने से पहले खुद को मानसिक तौर पर मजबूत बनाना होगा और कोरोना के डर को मन से निकालना होगा।

अपने-अपने स्तर पर तैयार हैं जिम ओनर्स
5 अगस्त से जिम खोलने के फैसले के बाद जिम ओनर्स भी अपने क्लाइंट्स की सुरक्षा और बिजनेस की वापसी के लिए तैयार हैं। भोपाल में जिम संचालक और ट्रेनर अमरीक कहते हैं "हमने हमारे सभी मेंबर्स को मैसेज कर मास्क, सैनिटाइजर और ग्लव्ज लाने को बोल दिया है। जिम में टैम्परेचर जांचने वाली गन और सैनिटाइजेशन की व्यवस्था कर ली गई है।'

जिम में जाएं तो इन 7 बातों का ध्यान जरूर रखें

  1. सतहों की सफाई: जिम में एक्सरसाइज के दौरान अपने साथ-साथ जिम की दूसरी सतहों को भी साफ करें। हालांकि एक्सपर्ट्स के अनुसार, मेटल और आकार के कारण जिम के उपकरणों को साफ करना मुश्किल है, लेकिन हम अपनी आदतें बदलकर जोखिम को कम कर सकते हैं।
  2. डिसइंफेक्टेंट का उपयोग: जिम में डिसइंफेक्टेंट स्प्रे, सैनिटाइजर और वाइप्स होनी चाहिए। इससे एक्सरसाइज करने वाला व्यक्ति खुद ही अपने लिए सुरक्षित माहौल तैयार कर लेगा। याद रखें जब भी किसी सतह पर डिसइंफेक्टेंट लगाएं तो थोड़ी देर रुकें, ताकि जर्म्स साफ हो सकें।
  3. खुद का पानी लेकर जाएं: जिम में पानी पीने के बर्तनों जैसी चीजों का उपयोग करने से बचें। अपने घर से अपनी बॉटल और पानी साथ लेकर जाएं। इससे आप बार-बार छूई जाने वाली किसी भी सतह से दूरी बना कर रख सकेंगे।
  4. मशीनों की सफाई: अगर किसी सतह पर गंदगी जमी हुई है तो वहां सीधे सैनिटाइजर या डिसइंफेक्टेंट का उपयोग न करें। पहले सतह को साफ करें और दिखाई दे रही गंदगी को हटाएं। जिम में भी हर जगह सैनिटाइजर और हैंड वॉश मौजूद होना चाहिए। किसी भी मशीन को उपयोग से पहले और बाद में भी साफ करें।
  5. सैनिटाइज्ड टॉवेल साथ रखें: जिम में मौजूद कपड़ों का इस्तेमाल न करें। एक्सरसाइज करने के लिए जाने से पहले घर से सैनिटाइज्ड टॉवेल साथ लेकर जाएं। हो सके तो एक से ज्यादा टॉवेल या कपड़ा लेकर जाएं, ताकि एक से आप चेहरे और पसीने को साफ कर पाएंगे और दूसरे का इस्तेमाल बेंच को कवर करने के लिए करें।
  6. कम भीड़ वाली जिम चुनें: ऐसे जिम में जाने का प्रयास करें जहां कम से कम लोग हों और ऐसा वक्त चुनें जब एक्सरसाइज हॉल में भीड़ न जुटे। अगर मुमकिन हो तो अपने ट्रेनर या जिम ऑनर से बात कर अपना टाइम बदलवा लें। इससे एक्सरसाइज के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना आसान होगा।
  7. नॉन एसी में एक्सरसाइज: एसी में एक्सरसाइज करने से बचें। वो लोग जो जिम जाने की शुरुआत करने के बारे में सोच रहे हैं, वे नॉन एसी जिम को ही प्राथमिकता दें। इसके अलावा जिम में क्रॉस वेंटिलेशन की भी जांच कर लें। इससे आपको कई तरह से सुरक्षा मिलेगी।

जिम ओनर्स एसोसिएशन ने दिल्ली और केंद्र सरकार को 8 प्वाइंट्स का एसओपी सौंपा है

  1. जिम में आने वाले सदस्यों को भीड़ से बचने के लिए स्लॉट्स बुक करना होगा।
  2. जिम के अंदर सीमित संख्या में लोगों को आने की अनुमति मिलेगी। यह जिम के एरिया पर निर्भर होगा। बड़े जिम्स में भी 15 से ज्यादा लोगों को आने की अनुमति नहीं होगी।
  3. एंट्री पर थर्मल स्क्रीनिंग होगी।
  4. मास्क का उपयोग करना जरूरी है।
  5. फ्लोर एक्सरसाइज के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग रूल फॉलो करना जरूरी है।
  6. जिम के अंदर शॉवर नहीं चलाए जाएंगे।
  7. मेंबर्स को अपनी खुद की पानी की बोतल लानी होगी।
  8. हर 40 से 45 मिनट के अंतराल में सैनिटाइजेशन होगा।

मुश्किल में थे जिम मालिक

जिम बंद होने के कारण कई फिटनेस प्रोफेशनल्स हेल्थ के अलावा अपनी कमाई को लेकर भी काफी परेशान थे। राजस्थान में उदयपुर जिम एसोसिएशन के अध्यक्ष पवन सुखवाल ने बताया कि कोरोना के चलते पिछले 5 माह से जिम बंद हैं। कोई कमाई ना होने से जिम संचालक अभी जिम का किराया, ट्रेनर और दूसरे स्टाफ के लोगों को सैलेरी देने की हालात में नहीं हैं। जिम का हर महीने का लाखों रुपए का किराया है।

जहां एक साथ कई लोग पसीना बहा रहे हैं, वहां फैल सकती है बीमारी
एक स्टडी ने शोधकर्ताओं ने पाया था कि चार अलग-अलग एथलेटिक ट्रेनिंग सुविधाओं में 25 फीसदी सतहों पर फ्लू वायरस, बैक्टीरिया और दूसरे पैथेजन्स मिले थे। एक्सपर्ट्स बताते हैं कि जिस जगह पर कई लोग एक साथ एक्सरसाइज करते हैं और पसीना बहाते हैं, वहां ट्रांसमिशन वाली बीमारी फैल सकती है।

पुरानी और नई मेंबरशिप में बैलेंस बनाना चुनौती

  • महीनों से जिम बंद होने के कारण कई जिम ओनर्स की आर्थिक स्थिति खराब हो गई है। उनका कहना है कि लॉकडाउन के शुरुआती दौर में मानसिक तौर पर हमने इस नुकसान को संभाल लिया, लेकिन लगातार बढ़ रही पाबंदियों के कारण नुकसान ज्यादा हुआ है।
  • अमरीक सिंह के मुताबिक, अगर जिम में आने वाले मेंबर्स दो महीने की फीस दे देते हैं तो उन्हें जिम जारी रखने में आसानी होगी। हालांकि, उन्होंने कहा कि किसी की मेंबरशिप में कोई कटौती नहीं होगी, जिम में आने वाले लोग पहले की तरह ही अपनी मेंबरशिप जारी रख सकेंगे।


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Gym Reopening Guidelines Coronavirus Latest News Updates | Know What Are Some Gym Safety Precautions Against COVID


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कांग्रेस पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ही दो विकल्पों में बंटा लगता है, साफ पता चल रहा कि सबकुछ ठीक नहीं

हाल ही में राजस्थान और कुछ अन्य राज्यों में कांग्रेस पार्टी में हुईं तकरार बताती हैं कि पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं है। ऐसे में यह सोचने की जरूरत है कि इस बहुत पुरानी पार्टी को क्या संकट की ओर धकेल रहा है। क्या ऐसा सिर्फ इसलिए है कि पार्टी हाल ही में कई चुनाव हारी है या इसका कारण पार्टी में अपेक्षाकृत कमजोर वैचारिक संबंध हैं या इसके पीछे कमजोर मौजूदा केंद्रीय नेतृत्व है? क्या हाल ही में उसके नेताओं का दल बदलना सिर्फ उनकी महत्वाकांक्षा और अधीरता की निशानी है या पार्टी में नेताओं के बीच मजबूत पीढ़ीगत विभाजन है?

लोकतांत्रिक देश में कोई पार्टी हमेशा सत्ता में नहीं रह सकती

एक लोकतांत्रिक देश में कोई पार्टी हमेशा सत्ता में नहीं रह सकती है, इसलिए पार्टियों की जीत-हार आम है। भाजपा भी 2004 और 2009 में लगातार दो चुनाव हारी थी लेकिन 2014 में फिर सत्ता में आई। लेकिन उसे कांग्रेस जैसे संकट का सामना नहीं करना पड़ा। इसलिए केवल दो लोकसभा चुनाव हारना कांग्रेस के मौजूदा संकट का कारण नहीं हो सकता।

कांग्रेस की विचारधारा (आधिकारिक) में शायद ही कोई बदलाव आया है। इसलिए इसे पार्टी में संकट का कारण नहीं मान सकते। कमजोर हो या मजबूत, कांग्रेसियों के वैचारिक संबंध ऐतिहासिक रूप से समान रहे हैं। भारतीय मतदाता शायद कांग्रेस के वैचारिक झुकाव को लेकर व्यग्र रहे हों, लेकिन कांग्रेस नेताओं में कोई व्यग्रता नहीं है।

कांग्रेस संकट के कई कारण

शायद परस्पर संबंध वाले तीन कारक- कमजोर केंद्रीय नेतृत्व, पीढ़ीगत विभाजन व महत्वाकांक्षी युवा नेता कांग्रेस के संकट का कारण हो सकते हैं। पहले आखिरी कारक देखते हैं। क्या राजनीति में महत्वाकांक्षी होना गलत है? बिल्कुल नहीं, क्योंकि हमारी दुनिया में राजनीति शायद ही समाजसेवा है।

पार्टी सदस्यों में ऊंचे पद हासिल करने और उन पर बने रहने की महत्वाकांक्षा भी सामान्य है। स्वाभाविक है कि इन गुणों से पार्टी को गुटबाजी, दल-बदल और टूटने आदि का खतरा है, इसलिए पार्टियों को हमेशा तैयार रहना होता है और कांग्रेस का अतीत में ऐसे महत्वाकांक्षी नेताओं की महत्वाकांक्षा सफलतापूर्वक पूरी करने का रिकॉर्ड रहा है।

कांग्रेस में 1967, 1977, 1989 और 1999 में आए ज्यादातर संकटों का समाधान इसलिए हो गया क्योंकि तब केंद्रीय नेतृत्व मजबूत था। लेकिन अब कमजोर केंद्रीय नेतृत्व संकट को सफलतापूर्वक सुलझाने में अक्षम है।

राहुल की लोकप्रियता लगातार घट रही है

कांग्रेस में संकट का असली कारण उस खाली जगह में है, जिसका पार्टी केंद्रीय नेतृत्व को लेकर सामना कर रही है। लोकनीति-सीएसडीएस द्वारा कराए गए सर्वेक्षणों के मुताबिक जहां नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता साल-दर-साल बढ़ रही है, वहीं राहुल गांधी की लोकप्रियता लगातार गिरी है।

2014 की शुरुआत में प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी 34% भारतीयों की पसंद थे, जबकि 23% ने राहुल गांधी को पसंद किया। लेकिन 2019 तक जहां मोदी की लोकप्रियता 46% पर पहुंच गई, राहुल गांधी की लोकप्रियता गिरकर 19% पर आ गई। यहां तक कि जब प्रवासी मजदूर अचानक लॉकडाउन की वजह से संकट में थे, तब भी मोदी की लोकप्रियता में शायद ही कोई फर्क आया, लेकिन राहुल गांधी की लोकप्रियता बढ़ नहीं पाई। स्पष्ट रूप से, जितने जल्दी हो सके, कांग्रेस को इस समस्या का समाधान करना होगा।

कमजोर नेतृत्व ने बढ़ाया फासला

कमजोर केंद्रीय नेतृत्व ने युवा और बुजुर्ग नेताओं के बीच पीढ़ीगत विभाजन को उभरने का अवसर दिया है। बुजुर्ग नेता अनुभव के आधार पर अधिकार जताते हैं वहीं युवा पीढ़ी बेहतर शिक्षा और सक्रियता के आधार पर निर्णय लेने में अपना हिस्सा चाहते हैं। दुर्भाग्य से, पार्टी का शीर्ष नेतृत्व भी दो विकल्पों में बंटा लगता है।

गुटबाजी और संकट, दलगत राजनीति में सामान्य हैं। मुद्दा उनके प्रबंधन का है और यह उसके नेतृत्व और उनकी संकट के प्रबंधन की क्षमताओं व कार्य के तरीकों पर काफी निर्भर करता है। स्पष्ट रूप से कांग्रेस अपने मौजूदा कमजोर नेतृत्व की वजह से गुटबाजी और संकट के प्रबंधन में असफल रही है। अब पार्टी के समक्ष बड़ी चुनौती यह है कि वह यह सोचे कि नेताओं, कार्यकर्ताओं और मतदाताओं में आत्मविश्वास कैसे बनाया जाए।

कांग्रेस के पुनरुत्थान का रास्ता आसान नहीं होगा
कांग्रेस के पुनरुत्थान का रास्ता आसान नहीं होगा। पिछले दो लोकसभा चुनावों में वोट में 20% गिरावट के साथ हार, पार्टी की सबसे बड़ी हार रही है। वह लंबे समय तक हिन्दी पट्‌टी में सत्ता से बाहर रही है, जहां बड़ी संख्या में लोकसभा सीट हैं। उप्र, बिहार, तमिलनाडु और प. बंगाल जैसे राज्यों में वह दो दशकों से सत्ता में नहीं रही है और उसका वोट शेयर एक अंक में आ गया है।

दिल्ली और आंध्र प्रदेश में भी ऐसा ही है। वह उन राज्यों में दल-बदल और पलायन का सामना कर रही है, जहां हाल के वर्षों में उसने विधानसभा चुनाव जीते हैं। कुल मिलाकर कांग्रेस के लिए पुनरुत्थान का काम बहुत मुश्किल होगा।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)



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संजय कुमार, सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज (सीएडीएस) में प्रोफेसर और राजनीतिक टिप्पणीकार


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कांग्रेस नेतृत्व का मुद्दा अर्थहीन नाटक बनता जा रहा, राहुल की हार ने ही कांग्रेस के अवसर खत्म कर दिए थे

कांग्रेस नेतृत्व का मुद्दा एक अर्थहीन नाटक बनता जा रहा है। अंतरिम एआईसीसी प्रमुख सोनिया गांधी उस पद को छोड़ने बेताब हैं, जिसपर वे 21 साल से हैं। 17 महीने कांग्रेस अध्यक्ष रह चुके उनके बेटे पहले चाहते थे कि कोई गैर-गांधी यह पद संभाले, पर अब इस शर्त पर वापसी चाहते हैं कि मुख्य नियुक्तियां उनकी पसंद से हों। राहुल गांधी पार्टी की सत्ता संरचना व पदक्रम बदलने को उत्सुक हैं। हालांकि वे इस तथ्य से अनजान रहना चाहते हैं कि सार्वजनिक जीवन या राजनीति में अधिकार सफलता के साथ आता है।

पार्टी में विद्रोह के संकेत नदारद हैं

विसंगति सिर्फ गांधियों तक सीमित नहीं है। 2014 और 2019 के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद भी पार्टी में विद्रोह के संकेत लगभग नदारद हैं। संदीप दीक्षित, शर्मिष्ठा मुखर्जी, शशि थरूर, मिलिंद देवड़ा, जयराम रमेश और कपिल सिब्बल जैसे आदतन मतविरोधियों ने भी पार्टी की स्थिति पर चर्चा को लेकर कोई कदम नहीं उठाया। हर कोई पार्टी में नंबर दो की भूमिका की उम्मीद में लगता है।

युवाओं से उम्मीद थी। लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट जैसे वंशजों ने हरा मैदान तलाशने का आसान विकल्प चुना। अब लगता है कि सिंधिया के जाने और पायलट के विद्रोह का संबंध उनसे दिसंबर 2018 में किए गए अनौपचारिक वादों को पूरा करने में गांधियों की असफलता से भी है।

उस समय सिंधिया और पायलट, दोनों आगे आकर नेतृत्व करना चाहते थे, लेकिन राहुल, प्रियंका और सोनिया ने उनकी कम उम्र का हवाला देते हुए कहा कि उन्हें आगे बड़ी भूमिकाएं दी जाएंगी। लेकिन 52 सीटों और खुद राहुल की अमेठी में हार ने सबकुछ खत्म कर दिया।

टीम राहुल के कई युवा सदस्यों ने राहुल को ही हार का जिम्मेदार माना

टीम राहुल के कई युवा सदस्यों ने निजी तौर पर 2019 की हार के लिए राहुल को जिम्मेदार माना। यह दृष्टिकोण इस साधारण सूत्रीकरण पर आधारित था कि 2019 लोकसभा चुनाव मोदी और राहुल के बीच लड़े गए, जहां सिंधिया जैसे व्यक्तिगत उम्मीदवार महत्वहीन थे क्योंकि उनके कई पुराने समर्थकों ने भी मोदी को वोट दिया, चूंकि सिंधिया राहुल का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। इस निराशाजनक पृष्ठभूमि में पुनरुत्थान के तरीके बहुत कम हैं। हालांकि पुराने तरीके अपना सकते हैं।

अगर राहुल खुलकर पार्टी अध्यक्ष के रूप में वापसी का साहस जुटा सकते हैं तो उन्हें कांग्रेस वर्किंग कमेटी और अन्य पदक्रम स्तरों के लिए चुनावों की घोषणा करनी चाहिए, ताकि हाईकमान का लोकतांत्रिक आधार बने। नए नेता को रघुराम राजन, अभिजीत बैनर्जी जैसे विशेषज्ञों का साक्षात्कार करने की बजाय जमीनी स्तर की आवाजें सुननी चाहिए।

लोकतांत्रिक पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस ने कार्यकर्ताओं को सुनना बंद कर दिया है। आर्टिकल 370, ट्रिपल तलाक, सीएए-एनआरसी और गलवान घाटी आदि मुद्दों पर ही पार्टी का रुख देख लीजिए। ऐसी बुदबुदाहटें और आवाजें थीं, जो ज्यादा सूक्ष्म दृष्टिकोण चाहती थीं लेकिन राहुल और सोनिया ने जिला या राज्य स्तर के पार्टी प्रतिनिधियों की बातों पर ध्यान दिए बिना अपने विचार थोपे। अपने ही कार्यकर्ताओं को न सुनना शायद पार्टी के लगातार गिरने का बड़ा कारण है।

2018 के बाद से ही एआईसीसी का सत्र नहीं हुआ

यह अजीब है कि कांग्रेस ने मार्च 2018 के बाद से एआईसीसी का सत्र आयोजित नहीं किया है, जबकि कांग्रेस संविधान के अनुसार साल में एक बार आयोजन अनिवार्य है। फैसले लेने में भी कांग्रेस पार्टी के वकीलों पर बहुत निर्भर है। ज्यादातर मुद्दों पर कपिल सिब्बल, विवेक तन्खा, अभिषेक मनु सिंघवी और अन्य के भिन्न मत होते हैं।

राजस्थान संकट जैसे ज्यादातर राजनीतिक मुद्दों पर अदालत की ओर भागने का नुकसान ही हुआ है। ए.के. एंटोनी, मोतीलाल वोरा, सुशील कुमार शिंदे की समिति समस्या सुलझा सकती थी या पायलट के खिलाफ निर्णायक कदम उठा सकती थी। सोनिया के उत्तराधिकारी राहुल होने चाहिए, इसे लेकर पार्टी में लगभग सहमति को देखते हुए, पार्टी में एक त्वरित प्रतिक्रिया और शिकायत निवारण तंत्र की जरूरत है।

राहुल पर सवाल उठते रहे हैं

कांग्रेस परिवार में राहुल के अंतर्वैयक्तिक और सामाजिक कौशलों पर सवाल उठते रहे हैं। कांग्रेस को उस खबर का खंडन करना पड़ा, जिसमें बताया गया कि एनएसयूआई की बैठक में राहुल ने कथित रूप से कहा कि जो पार्टी छोड़ना चाहे, छोड़ सकता है। 2004 में कांग्रेस से जुड़ने के बाद से ही राहुल की छवि पार्टी नेताओं के प्रति कुछ उदासीन रहने की रही है।

जनवरी 2013 में जब वे एआईसीसी के उपाध्यक्ष बने, उन्होंने जयपुर में कहा कि वे ‘सब चलता है’ वाले तरीके को सहने की बजाय ‘सभी का आकलन करेंगे’ (कांग्रेस नेताओं का)। लेकिन चुनावी हारों, मतभेदों और संभावित दल-बदल का सामना कर रही पार्टी के लिए, भविष्य के कांग्रेस लीडर को क्षेत्रीय नेताओं को खुश रखना होगा और ढेरों मतभेद सहने होंगे। (ये लेखक के अपने विचार हैं)



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र‌शीद किदवई, आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के विजिटिंग फेलो और ‘सोनिया अ बायोग्राफी’ के लेखक


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बच्चे बड़े पैमाने पर वायरस कैरियर हो सकते हैं, स्कूल खोलने पर फिर छिड़ सकती है बहस

लॉकडाउन के दौर में स्कूलों को फिर से खोलने को लेकर जारी चर्चा के बीच अब तक यह माना जाता रहा है कि कोरोनावायरस ने बड़ी संख्या में छोटे बच्चों को चपेट में नहीं लिया और उनसे दूसरों तक नहीं फैलता। अगर फैला भी है, तो बहुत कम। लेकिन, एक नए अध्ययन में चौंकाने वाले नतीजे मिले हैं। इसके मुताबिक, बच्चे बड़े पैमाने पर कोरोनावायरस के कैरियर हो सकते हैं।

जेएएमए पीडियाट्रिक्स में प्रकाशित इस अध्ययन के प्रमुख और शिकागो में एन एंड रॉबर्ट एच लॉरी चिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल के संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. टेलर हेल्ड-सार्जेंट कहती हैं, ‘ऐसी कई वैज्ञानिक बारीकियां सामने आ रही हैं। अगर बच्चे बीमार या बहुत बीमार नहीं पड़ रहे हैं, तो हम यह नहीं मान सकते हैं उनमें वायरस नहीं है।’

145 लोगों के स्वाब पर अध्ययन हुआ

अध्ययन के दौरान कोरोना संक्रमित 145 लोगों के स्वाब का विश्लेषण किया गया। इनमें 46 बच्चे 5 साल से कम उम्र के, 51 बच्चे 5 से 17 साल के और 18 से 65 साल के 48 लोगों के स्वाब लिए गए। इसमें उन बच्चों को नहीं शामिल किया गया जिन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत थी।

ज्यादातर बच्चों में बुखार और खांसी के लक्षण थे। जांच में पता चला कि बच्चों के शरीर में अन्य लोगों की तुलना में बहुत ज्यादा वायरस थे। इस खुलासे के बाद स्कूल दोबारा खोलने को लेकर नई बहस छिड़ सकती है। सेंट जूड चिल्ड्रन रिसर्च हॉस्पिटल के एक वायरोलॉजिस्ट स्टेसी शुल्ज-चेरी कहती हैं, ‘मैंने बहुत से लोगों को कहते हुए सुना है कि बच्चे अतिसंवेदनशील नहीं हैं या संक्रमित नहीं होते हैं। लेकिन यह सच नहीं है। यह शोध इस बात को समझने के लिए महत्वपूर्ण है कि संक्रमण फैलाने में बच्चे किस तरह की भूमिका निभा रहे हैं।’

यूनिवर्सिटी ऑफ मैनिटोबा के वायरोलॉजिस्ट जेसन किंडरचुक ने कहा, ‘अब जब हम जुलाई के अंत में पहुंच चुके हैं और अगले महीने स्कूलों को दोबारा शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं, तो ऐसे में इस फैसले पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है।’

5 साल से कम के संक्रमित बच्चे के शरीर में 100 गुना ज्यादा वायरस

इस नए शोध में कहा गया है कि कोरोनावायरस से संक्रमित बच्चों के नाक या गले में उतने ही वायरस होते हैं, जितने एक युवा में। यहां तक कि 5 साल से कम उम्र के बच्चे के श्वास मार्ग में युवा व्यक्ति की तुलना में 100 गुना ज्यादा वायरस हो सकते हैं। ऐसे में विशेषज्ञ इस बात को लेकर चिंतित हैं कि बच्चे कोरोनावायरस के एक बड़े और महत्वपूर्ण कैरियर हो सकते हैं।

- न्यूयॉर्क टाइम्स से विशेष अनुबंध के तहत



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इस नए शोध में कहा गया है कि कोरोनावायरस से संक्रमित बच्चों के नाक या गले में उतने ही वायरस होते हैं, जितने एक युवा में।


source https://www.bhaskar.com/national/news/children-can-become-virus-carriers-in-a-big-way-debate-can-open-again-when-school-opens-127573222.html

अयोध्या में तीन घंटे रहेंगे पीएम मोदी, नेपाल सीमा तक हाई अलर्ट घोषित; प्रमुख मार्गों पर बैरिकेडिंग, प्रवेश पर पहचान पत्र की जांच की जा रही

अयोध्या में राम मंदिर के भूमि पूजन के लिए प्रधानमंत्री के ऐतिहासिक दौरे को लेकर युद्धस्तर पर तैयारियां चल रही हैं। वहीं, प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार आ रहे पीएम नरेंद्र मोदी अयोध्या में तीन घंटे से ज्यादा रुक सकते हैं। इसे ध्यान में रखकर सुरक्षा और सजावट पर खास ध्यान दिया जा रहा है। माहौल को पूरी तरह धार्मिक बनाए रखने की तैयारी की गई है।

अयोध्या को जोड़ने वाले हाईवे व सड़कों पर सुरक्षा बैरिकेडिंग कर दी गई है। अयोध्या में प्रवेश करने वाले वाहनों के लिए परिचय पत्र की जांच अनिवार्य हो गई है। सभी संवेदनशील स्थानों, पावर हाउस, इमारतों आदि पर जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे लगाए जा रहें है। जिनके लिए एकीकृत कंट्रोलरूम बन रहा है। इस कंट्रोल रूम से अयोध्या के चप्पे-चप्पे पर नजर रखी जाएगी। आसमानी सुरक्षा के लिए भी उपाय किए जा रहे हैं।

हनुमानगढ़ी और सरयू घाट भी जा सकते हैं मोदी

पीएम मोदी हनुमानगढ़ी और सरयू घाट पर भी जा सकते हैं। इन दोनों स्थानों के साथ नगर के मठों-मंदिरों को भी संवारा जा रहा है। उप्र के एडीजी कानून व्यवस्था प्रशांत कुमार ने कहा कि ‘पीएम की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जा रहा है।

अयोध्या जिला प्रशासन ने जितनी संख्या में फोर्स और पुलिस अधिकारी मांगे हैं, उन्हें दे दिए गए हैं। अयोध्या में सात जोन बनाए गए हैं, इसमें हनुमानगढ़ी और सरयू तट जोन भी शामिल हैं। खुफिया एजेंसियों के इनपुट के बाद अयोध्या व आसपास के जिलों से नेपाल की सीमा तक हाईअलर्ट घोषित किया गया है।

पुख्ता तैयारी: पर्यटन मंत्री प्रहलाद पटेल पहुंचे, हैलीपैड बनकर तैयार

भूमि पूजन की तैयारियां के बीच शुक्रवार को केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल अयोध्या पहुंचे। उन्होंने हनुमानगढ़ी और श्रीरामलला के दर्शन किए। राज्य के पर्यटन मंत्री नीलकंठ तिवारी भी उनके साथ थे। दोनों मंत्रियों ने श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय से पर्यटन पर चर्चा की।

उप्र के अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश कुमार अवस्थी, एडीजी जोन एसएन साबत व एडीजी कानून-व्यवस्था प्रशांत कुमार ने पीएम के दौरे के सुरक्षा इंतजामों की समीक्षा की। साकेत महाविद्यालय में बन रहे हेलीपैड के साथ पूरे मार्ग का निरीक्षण किया।

पहली बार: देश की आध्यात्मिक शक्तियां एकसाथ मौजूद रहेंगी

5 अगस्त को पहली बार देश की आध्यात्मिक शक्तियां एक साथ 70 एकड़ के जन्मभूमि परिसर में मौजूद होगीं। इस परिसर में भूमि पूजन के दौरान सनातन धर्म के साथ दूसरे पंथों, संप्रदायों व मजहबों के धर्मगुरू होंगे। देशभर से आने वाले धर्मगुरुओं के स्वागत के लिए बेहतरीन इंतजाम किए जा रहे हैं।

सभी के लिए उनकी प्रतिष्ठा के मुताबिक आसान दिया जाना है। विहिप के पूर्वी उप्र के संगठन मंत्री अंबरीश ने कहा कि परिसर में हर पंथ व मजहब के धर्मगुरुओं की मौजूदगी से देश के सर्वधर्म समभाव लक्ष्य साकार होगा।

उत्सव: अयोध्या में 3 अगस्त से ही घरों के बाहर लाखों दीप जलाए जाएंगे।

16 लाख लड्डू: दूतावासों में प्रसाद के तौर पर बीकानेरी लड्डू भेजे जाएंगे। चार लाख पैकेट तैयार किए गए।

भेंट: पीएम मोदी को ट्रस्ट राम और लव-कुश की प्रतिमाएं भेंट करेगा।

लंगर: लड्डू बांटने और भोजन के लिए भंडारा, लंगर लगंगेे।



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फोटो वाराणसी रेलवे स्टेशन की है। यहां से अयोध्या की ओर जाने वाली सभी वाहनों की चेकिंग हो रही है।


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दशकों सूनी रही अयोध्या की आंखों में अब रंग चमकते हैं, यहां उम्मीदों की नई बयार बहने लगी है, युवाओं को आशा- भविष्य अब बेहतर होगा

सरयू पूरे उफान पर है। प्रवाह इतना तेज और लहरों लहर फैला है कि उस पार किनारा नहीं दिखता। बचपन से सरयू किनारे ठेला लगाने वाले हों या संभावनाशील कारोबारी, उनकी आंखाें में नई चमक है।

युवाओं को साफ दिख रहा है कि मंदिर से जुड़ी राजनीति चाहे जो भी हो, अयोध्या अब हरिद्वार और तिरुपति को पीछे छोड़ने जा रही है। हालांकि, राम मंदिर के आसपास के इलाके के लोगों के चेहरों पर पुनर्निर्माण के दौरान टूट-फूट का डर भी साफ पढ़ा जा सकता है। लेकिन, नई पीढ़ी को लगता है कि उनका भविष्य बेहतर होने जा रहा है।

होटल कारोबारी के अनिल अग्रवाल कहते हैं- 2000 से ज्यादा नए होटल खुलने की संभावना तो है ही, यहां की रेलवे कनेक्टिविटी बढ़ने, एयरपोर्ट बनने और पर्यटन के समृद्ध होने की अपार संभावनाएं हैं। राम नवमी या दिवाली पर यहां विश्वभर से यात्री जुटेंगे। सरयू की महिमा पहले ही इतनी है कि यहां सावन में एक-एक दिन 15-15 लाख लोग जुटते हैं। पिछले साल 2 करोड़ पर्यटक आए थे।

श्रीराम पौड़ी से नया घाट तक पूरी अयोध्या सज रही

श्रीराम पाैड़ी और नया घाट से लेकर रामलला के मंदिर तक पूरी अयोध्या सज रही है। उसकी धज पहले की तुलना में अब इतनी अलग है कि बेहद पुरानी और औसत सी लगने वाली यह धार्मिक-ऐतिहासिक नगरी अब सनातन धर्म का प्रमुख तीर्थ बनने के लिए अंगड़ाइयां तोड़ती लग रही है। हालांकि, इसमें हिंदुत्व की राजनीति भी नींव पूजन के माध्यम से नए उफान का संकेत दे रही है।

यह अयोध्या उस अवध से अलग है, जिसके बारे में कभी नजीर बनारसी ने कहा था- काली बलाएं सर पर पाले, शाम अवध की डेरा डाले, ऐसे में कौन अपने को संभाले, मेरा निवास स्थान यही है, प्यारा हिंदोस्तान यही है! अयोध्या में आप जहां भी जाएंगे, पीले रंग की पुताई का काम दिखेगा। पीले रंग वाले इन भवनों के सब दरवाजे भगवा हो रहे हैं।

बदलाव दिखने लगा है

राम की पाैड़ी, नया घाट, कनक भवन मंदिर और मुख्य मार्गों पर एक बदलाव साफ दिख रहा है। कल तक अयोध्या के जो क्षेत्र वीरान और गर्दों गुबार से ढके थे, वे अब बोलते घर हो गए हैं। ऐसे घर, जिनके आंगन में मोदी-योगी की राजनीति भी आकार लेगी! हालांकि, कोरोना के कारण सब जगह घबराहट है।

फिर भी देशभर से तीर्थ यात्री अयोध्या आ रहे हैं। अयोध्या से सटे फैजाबाद में राजकोट के गोविंद भाई मेहता बताते हैं कि वे बचपन से अयोध्या आ रहे हैं। पहले यह बड़ा चुप और सूना-सूना शहर था, लेकिन अब इसकी तासीर बदल रही है। वे एक कविता गुनगुनाते हैं- लौट आओ जो कभी राम की सूरत तुम तो! मन का सुनसान अवध दीप नगर हो जाए! वे कहते हैं, पूरे परिवार के साथ दीपोत्सव में दीप जलाने आए हैं। यहां लोग कहते हैं कि राम मंदिर बन जाएगा, अच्छा है।

मन की मुराद पूरी हो जाएगी, लेकिन अभी तो कोरोना के कारण अवध के चमन से चहक गायब और महक नदारद है! अलबत्ता, सियासत के दरिया में ज़रूर मौजें उठ रही हैं। खासकर भाजपा और हिंदुत्व के बादल इस सावन में गरज और बरस रहे हैं! जगह-जगह लगे बड़े-बड़े होर्डिंग इसी इबारत को बांच रहे हैं।

तिरुपति से समझिए कि एक धर्मस्थल पूरे इलाके को कैसे बदल सकता है

आंध्रप्रदेश के तिरुपति बालाजी मंदिर में 21 हजार कर्मचारी हैं। राेज 65 हजार श्रद्धालु आते हैं। मंदिर की धर्मशालाओं के अलावा शहर में 800 से ज्यादा होटल हैं, जो श्रद्धालुओं पर ही निर्भर हैं। इन होटलों में हजारों कर्मचारी हैं। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए 20 हजार से ज्यादा ऑटो-टैक्सियां चलती हैं।

धर्मस्थल होने की वजह से यहां दशकों से अरबों रुपयों के विकास कार्य हो चुके हैं। 1 हजार से ज्यादा दुकानें-रेस्त्रां श्रद्धालुओं के दम पर चल रही हैं। इलाके के 2 लाख परिवारों की आमदनी सीधे तौर पर श्रद्धालुओं-पर्यटकों पर निर्भर है।



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राम मंदिर के भूमि पूजन को लेकर पूरे अयोध्या में जोर-शोर से तैयारियां चल रहीं हैं। पूरी अयोध्या को सजाया जा रहा है।


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